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प्यार का अहसास

सलीम रजा /
प्यार को हर इंसान अपने-अपने ढंग से परिभाषित करने का प्रयत्न करता है| प्यार की गहराई और इसकी उठती हुई तरंगों को संवाद के जरिए व्यक्त कर पाना उतना ही कठिन है जितना सूरज को अपलक देखने की कोशिश करना| प्यार वह शब्द है जिस पर सदियों से शायरों,कवियों, गीत कारों और लेखकों ने अपनी लेखनी न चलाई हो, लेकिन प्यार के संदर्भ में सार्थक लेखन किए जाने के बावजूद किसी भी बुद्धिजीवी या संत के द्वारा आज तक प्यार की सर्वमान्य परिभाषा नहीं लिखी जा सकी| क्योंकि प्यार इंसान के मन कि वह अभिव्यक्ति है जो कहने सुनने से ज्यादा समझने की शक्ति रखती है| यह भी कह सकते हैं कि समझने से ज्यादा महसूस करने की क्षमता रखती है| हम यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि प्यार मानव जीवन की बुनियाद है| प्यार के बिना इंसान सार्थक और सुखी जीवन की कल्पना नहीं कर सकता| इसलिए यह बात बिल्कुल स्पष्ट है प्यार की परिभाषा को शब्दों से बयां नहीं किया जा सकता| लिहाजा सारे शब्दों का अर्थ जहां जाकर अर्थ विहीन हो जाता है वही से प्यार का अंकुर जन्म लेता है| प्यार एक मधुर और सुखद एहसास मात्र है इसलिए प्यार की मादकता भरी खुशबू को सिर्फ और सिर्फ महसूस किया जा सकता है| इसलिए प्यार का विश्लेषण करने वालों ने मधुर एहसास की भाषा को शब्द विहीन भाषा की संज्ञा दी| प्यार को शब्द रूपी मोतियों की मदद से भावना की डोर में पिरोया जा सकता है लेकिन उसकी व्याख्या नहीं की जा सकती, जिसकी व्याख्या की जाती है या जिस को परिभाषित किया जा सकता है तो वह चीज दायरे में सिमट कर रह जाती है, जबकि प्यार तो सर्वत्र है और प्यार के बगैर इंसान का जीवन कोरी कल्पना मात्र है| प्यार इंसान की आत्मा में पलने वाला एक पवित्र भाव है, यह सच है कि दिल में उठने वाली भावनाओं को आप बहुत अच्छी तरह से बयान कर सकते हैं, लेकिन यदि आपके दिल में किसी के प्रति प्यार है तो उसे आप अभिव्यक्त नहीं कर सकते क्योंकि यह सिर्फ एक एहसास है, और एहसास बेजुबान होता है |प्यार की कोई भाषा नहीं होती प्यार में बहुत शक्ति होती है इसकी मदद से बहुत कुछ संभव है; यह एक जीता जागता उदाहरण है प्यार की बेजुबान भाषा जानवर भीअच्छी तरह से समझते हैं| प्यार कब कहां और किस से हो जाए इसके बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि जहां प्यार है वहां समर्पण है और जहां समर्पण है वहां अपनेपन की भावना जागृत होती है| फिर तो यह बात बिल्कुल सत्य है जहां पर अपनेपन की भावना रूपी उपजाऊ जमीन होती है वही प्यार के बीज अंकुरित होने की संभावना प्रबल हो जाती है| अंत में मैं यही कहना चाहूंगा विशुद्ध प्रेम वही है जिसके बदले में पाने की लालसा निषेध है| आत्मा की गहराई तक विद्यमान आसक्ति सच्चे प्यार का प्रमाण है|

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