आखिर क्यों मां को ब्रह्मचारिणी नाम से पुकारा गया जानिए वजह ?

 

ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः 

 

भारत की पवित्र भूमि में सर्वत्र कल्याण हेतु देवी व देवताओं की परम शक्ति की अनुभूति प्राचीनकाल से ही चली आ रही है। मां पार्वती ने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इस देवी को तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम से पुकारा गया।

मां दुर्गा की नवशक्ति का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है, यहां ब्रह्म का अर्थ तपस्या से है। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है।

ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली। देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है। इस देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं।

ब्रह्मचारिणी माता का जन्म हिमालय राज पर्वत के यहाँ हुआ था। जिनकी माता का नाम मैना था। एक दिन की बात है। ऋषिवर श्रीनारद जी महाराज हिमालय के यहा घूमते-घूमते जा पहुंचे नारद के आगमन से उनका बड़ा ही भव्य स्वागत सत्कार महाराज हिमालय के द्वारा किया गया। सभी हाल चाल को जानने के बाद हिमालय राज ने कन्या के भी भविष्य के बारे में जानने की उत्सुकता प्रकट की।

नारद जी द्वारा कन्या का हाथ देखकर हिमालय राज से उनके भावी जीवन का सम्पूर्ण हाल बताया गया। किन्तु वैवाहिक जीवन में अवरोध की स्थिति सुनकर उनकी माता अकुलाने लगी और नारद जी के जाने के बाद अपने पति से पूछती है, कि इस कन्या को कैसा पति मिलेगा उसकी स्थिति क्या होगी? मुनि ने क्या कहा है? आदि। तब सारी स्थिति को वह उनसे बताते हैं। कि मुनि श्री नारद जी ने कन्या के वैवाहिक जीवन की सुगमता व अन्य समस्याओं के निवारण हेतु व्रत, तप करने के उपाय बताएं है। अर्थात् नारद जी के कहे हुए वचनों के अनुसार कन्या व्रत व तपस्या में लीन हुई और हजारों वर्ष तक कठिन तप किया, माँ ने 1000 वर्ष तक जंगल में उपलब्ध फलो को खाकर तथा 3000 हजार वर्ष तक कठिन तपस्या किया।

जिसे गोस्वामी तुलसी दास श्रीराम चरित्र मानस में इस प्रकार वर्णित करते हैं– कछु दिन भोजन वारि बतासा। कीन्ह कछुक दिन कठिन उपवासा।। अर्थात् इस प्रकार की कठिन तपस्या व व्रत से देव समुदाय सहित साक्षात ब्रह्मा जी को प्रसन्न होकर जाना पड़ा। जिसमें ब्रह्मा जी शिव को पति के रूप में प्राप्त करने का वरदान दिया जिससे इन्हें अन्नत अविनाशी भगवान शिव पति के रूप में प्राप्त हुए।

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