सलीम रज़ा/
विश्व पृथवी दिवस पर विशेष…………
आज पृथ्वी दिवस है । 2022 के पृथ्वी दिवस की थीम ‘‘इन्वेस्ट इन अवर प्लैनेट’’ है जो हमें हरियाली से समृद्ध जीवन बनाने को प्रेरणा देती है। यह थीम हमें इस बात का संदेश देती है कि हमारे स्वास्थ्य, हमारे घर-परिवारों, हमारी रोजी-रोटी और हमारी धरती को एक साथ संरक्षित करने का वक्त आ गया है।लेकिन दुःख का बिषय है कि आज दुनिया भर में हर जगह प्रकृति का दोहन और शोषण जारी है जिसकी वजह से पृथ्वी पर अक्सर उत्तरी ध्रूव की ठोस बर्फ का कई किलोमीटर तक पिघलना, सूर्य की पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी तक आने से रोकने वाली ओजोन परत में छेद होना, तूफान, सुनामी और भी कई ऐसी प्राकृतिक आपदाओं का होना और दीगर ज्वलंत समस्याएं बढ़ती जा रही है जिसके लिए मनुष्य ही जिम्मेदार हैं। ग्लोबल वार्मिग इसी का जीता जागता उदाहरण है जो आज हमारे सामने हैं।
अगर ऐसी आपदाएँ पृथ्वी पर होती रहीं तो वह दिन दूर नहीं जब पृथ्वी से जीव.जन्तु और वनस्पति का अस्तिव ही खत्म हो जाएगा। जैसा कि आप सब जानते हैं कि पृृथ्वी एक बड़ा और बहुत ही सुन्दर ग्रह है। इस ग्रह का ज्यादातर भाग पानी से ढ़का हुआ है, लिहाजा ये ही वजह है कि इस खूबसूरत ग्रह को ब्लू प्लेनेट के नाम से भी जाना जाता है। मगर अफसोस है कि आज जो भी हालात हमारे सामने पैदा हो रहे हैं उसमें कहीं न कहीं हम खुद ही जिम्मेदार हैं। हम अपने स्वार्थ.सिद्धि के लिए हरे.-भरे मैदानों को कंकरीट के जंगल बनाने में मशगूल हैं ऐसे में तो पर्यावरणीय असंतुलन होना ही है जो पृथ्वी पर रहने वाले जनमानस के लिए बेहद खतरनाक है। हम अपनी जरूरतों के लिए लगातार जंगलों को काट रहे है जिससे हरियाली घट रही है और आक्सीजन की लगातार कमी हो रही है। हरियाली पृथ्वी का गहना है और जब हम इस गहने को उतार लेंगे तब उसका सौंदर्य तो बिगड़ना ही है। हरियाली और पेड़.पौधों के बारे में गुरू रवीन्द्र नाथ टैगोर जी ने कहा था कि पृथ्वी को पेड़ से सजाकर स्वर्ग जैसा बनाने के लिए हमें जीवन भर कोशिशें करते रहना चाहिए, पेड़ों के साथ बातचीत करते रहना चाहिए, उनको देखना और सुनना ये सारी बातें इंसान को स्वर्ग का अहसास दिलाती है। लेकिन आज बढ़ती जनसंख्या और घटते जंगल की वजह से तेजी के साथ जलवायु परिवर्तन हो रहा है ।
ग्लोबल वार्मिंग के चलते ग्लेशियर पिघलने लगे हैं जिसकी वजह से इस सुन्दर ग्रह पर खतरा मंडराने लगा है। जिसको बचाने के लिए 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाया जाता है। ब्लू प्लेनेट पर ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को देखकर और मानव जीवन को सुरक्षित और संरक्षित करने के लिए हर साल 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाया जाने लगा। इस दिवस को मनाने में सभी स्कूलों के साथ स्वयं सेवी संस्थायें भी अपना सहयोग देती है इस दिन पेड़ं लगाये जाते हैं साथ ही चारो तरफ फैले कूड़ा.करकट को भी साफ किया जाता है। वहीं लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए नुक्कड़ नाटको का मंचन भी किया जाता है। दरअसल ये दिन लोगों को धरती को बचाने के लिए उनका योगदान और इसके प्रति संवेदनशील होने का है। आज हम तेजी के साथ विकास के सोपान चढ़ रहे है, लेकिन अभी भी अपनी धरती को बचाने के लिए हम असंवेदनशील ही नज़र आ रहे हैं क्योंकि जो भी चीज पर्यावरण के लिए खतरा है हम अपनी भोगविलासिता के आगे उसे छोड़ना नहीं चाहते भले ही इस ग्रह का जीवन खतरे में क्यों न पड़ जायेे। जब पहली बार 1970 में पृथ्वी दिवस मनाया गया था उसके बाद तकरीबन 192 से ज्यादा देशों में वैश्विक आधार पर इस दिन यानि पृथ्वी दिवस को हर साल 22 अप्रैल को मनाये जाने का संकल्प लिया गया। दरअसल विश्व पृथ्वी दिवस को एक सालाना मनाये जाने की अनिवार्यता के पीछे मंशा ये भी थी कि दुनिया को बढ़ते पर्यावरण असंतुलन और उनके प्रतिकूल प्रभाव से लोगों को जागरूक किया जाये।
1969 में सैन फ्रासिस्को के जान मैककोनल जो इस मुहिम के एक सक्रिय कार्यकर्ता थे उन्होंने सक्रियता के साथ इस दिवस को मनाने का प्रस्ताव रखा था। पर्यावरणीय सुरक्षा उपाय को बताने और लोगों को इसके प्रति जागरूक बनाना ही इस दिवस का मुख्य उद्देश्य है। हमारी धरा ही एक ऐसा ग्रह है जहां आज भी जीवन सुगम व संभव है, लिहाजा धरती पर जीवन वचाये रखने के लिए पृथ्वी की कुदरती उपहार यानि प्राकृतिक संपदा को संजो कर रखना पड़ेगा। इस पृथ्वी पर मनुष्य से ज्यादा चतुर और समझदार शायद कोई दूसरा प्राणी नहीं है लेकिन इंसान ही अपनी जिम्मेदारी और अपने कर्तव्यों को सही ढंग और ईमानदारी से नहीं निभा पा रहा है। इस एकाकी और भागम-भाग भरी जिन्दगी में उसे ये भी शुमार नहीं रह गया कि वो धरती मां जिसने उसे जन्म दिया उसी के साथ वो इतना कठोर और निर्दयी क्यों बनता जा रहा है ? क्यों इस धरा का इस्तेमाल गैर जिम्मेदाराना होकर कर रहा है ? दरअसल पर्यावरण असंतुलन के लिए कहीं न कहीं हम खुद ही कुसूरवार हैं। इस पर्यावरण असंतुलन के लिए हमारा रहन सहन हमारा प्रथ्वी के प्रति लापरवाह नजरिया और दिनो दिन तेजी के साथ बढ रहे आधौगीकरण भी बड़ी वजह बने है, साथ ही दिन रात धुंआ उगलते सड़कों पर दौड़ते वाहनों की वजह से भी प्रदूषण बढा है जिसके चलते असमय मौसम में हो रहे बदलाव इसका संकेत हैं। दूसरा एक और कारण है पालीथिन का उपयोग जिसे हम अपने से दूर नहीं कर पा रहे हैं। ये पालीथिन जमीन की उर्वरकता को तो निगल ही रही है साथ ही पृथ्वी की ओजोन परत को भी नुकसान पहुंचाने के साथ नदियों में पहुंचकर जल को भी दूषित कर रही है और इसी दूषित जल के पीने से हमारा जीवन खतरे में पड़ रहा है।
हमे अगर पृथ्वी को बचाना है तो हमें अपने संसाधनों के साथ अपने व्यवहार में भी तब्दीली लानी होगी। हमें हरियाली का संकल्प लेकर पौधों को लगाना होगा साथ ही जो पेड़ हैं उनकी उचित देखभाल के लिये आगे आना होगा संभव हो तो हरे भरे पेड़ों पर आरियां चलाने से भी बचना चाहिए। इतना ही नहीं हमें कम से कम वाहन चलाने चाहिए संभव हो तो पैदल या फिर साईकिल का इस्तेमाल करना चाहिए जिससे प्रदूषण को बढने से रोका जा सके। आज तेजी के साथ बदल रहे जलवायू परिवर्तन की बजह से ग्लेश्यिर सिकुड़ने लगे है दैवी आपदाओं का सबसे बड़ा कारण ये है, इसी के चलते विभिन्न देशों के तकरीबन सौ करोड़ से ज्यादा लोग पृथ्वी दिवस की मुहिम से जुड़ कर लोगों को विभिन्न माध्यमों से जागरूक करने में अपना योगदान दे रहे हैं। अगर हम ऐसी स्थिति में भी नहीं जागे तो तस्वीर और भी भयानक होगी हमारी असंवेदनशीलता की वजह से एक दिन ये ब्लू प्लेनेट जलमग्न हो जायेगा। फिर न तो धरा बचेगी, न ही कोई जीव जन्तु। आईये संकल्प ले कि इस ब्लू प्लेनेट को संरक्षित करने के लिए हम पृथ्वी दिवस पर मानव श्रंखला बनाकर लोगों को आने वाले खतरे से आगाह करके उन्हें पेड़ पौधों के साथ जलवायु परिवर्तन के कारकों के बारे में जागरूक करें, उन्हें इस बात का पता चले कि निरन्तर बढ़ रहे समुद्र तल की वजह ग्लोबल वार्मिंग है जिसके चलते ग्लेश्यिरों का पिघलना जारी है जो हमारे जीवन को एक दिन जलमग्न कर देगा। अन्ततः हमें बहुत सतर्क रहने के साथ पृथ्वी के प्रति अपने व्यवहार को बदलना होगा हमें पृथ्वी पर कुदरत ने अनमोल चीजें दी हैं उनके संरक्षण और संवर्द्धन का जिम्मा लेने का संकल्प उठाना होगा।