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सिमट रहे गणतंत्र के मायने

सलीम रज़ा /
सर्वविदित है कि हमारे देश का संविधान विश्व में सबसे बड़ा संविधान होने का गौरव रखता है। जिसके अन्तर्गत देश के नागरिकों को प्रजातांत्रिक अधिकार दिये गये हैं। संविधान का असल मकसद मुल्क के अन्दर विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की व्यवस्था और उनके दायित्वों, अधिकारों को सुनिश्चत करना है। संविधान के जरिये आज ही के दिन हमने अपने लोकतांत्रिक अधिकार हासिल किये हैं और इस तरह एक लोकतांत्रिक देश का निर्माण हुआ। देश का संविधान 26 जनवरी सन 1950 को 11 महीने 18 दिन कड़ी मशक्कत के साथ लागू किया गया। इसी वजह से हम इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। दरअसल ये दिन हमारे लिए बहुत ही अहमियत रखता है। क्योंकि देश की आजादी के लिए असंख्य स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था। उन्हीं अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों का सपना साकार हुआ। इस पावन पर्व पर हम उन योद्धाओं को नमन करते हैं, जिन्होंने देश की आजादी में अपना योगदान दिया था। उन शहीदों की कुर्बानियों का स्मरण करके संकल्प लेते हैं कि हमें अपने देश के गौरव को आगे ले जाना है। लेकिन अगर हम सोचे कि क्या सही मायनों में जिस तरह से हम अपने देश में अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। उससे गणतंत्र देश के उन सारे मौलिक अधिकारों पर सवालिया निशान लग जाता है, जो हमारे संविधान में निहित है। आज हमारे देश में हर नागरिक समस्याओं से जूझ रहा है। ये कहना बेमानी नहीं होगी कि आज हमारा देश अपने देशवासियों की अन्तरात्मा को झिंझोड़ रहा है। जो देश कभी सोने की चिड़िया कहलाता था, जहां कभी दूध दही की नदियां बहती थीं। जिस देश में आपसी भाई चारा, प्रेम और सद्भाव, वेद वाक्य हुआ करते थे। दुर्बल और असहाय की मदद के लिए हम सबसे आगे रहने के लिए तत्पर रहते थे। सर्वविदित है कि हिन्दुस्तान के आदर्श समाज और राम राज्य की विश्व पटल पर पहचान थी। जिस देश में महापुरूषों और गंथों ने सत्य की राह दिखाई हो, जिस देश का सत्यमेव जयते आदर्श था। लेकिन ये सोचो कि क्यों हम आज भी राजाओं के शासन काल को याद करते हैं। जिसमें प्रजा के अधिकारों का ध्यान रखा जाता था। न्याय व्यवस्था मजबूत थी, जिसमें भेदभाव नहीं था। इस लिहाज से लोग आज भी यह कहते नहीं अघाते कि उस दौर की न्याय व्यवस्था कितनी सुद्धढ़ थी। राजा के कर्मचारियों को प्रजा को प्रताड़ित करने का अधिकार नहीं था। उस दौर में सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में नैतिकता दिखाई देती थी। बुराई के प्रति अच्छाई का बोलबाला था। आजादी के बाद महात्मा गांधी ने एक ऐसे देश की कल्पना की थी, जिसमें नागरिकों को दिये जाने वाले अधिकारों में कोताही न हो। देश का नागरिक अपने मौलिक अधिकारों के लिए दर बदर न भटके। जहां हर नागरिक को समान अधिकार हो, जो किसी राम राज्य से कमतर नही होता। हमने प्रगति और विकास की और तेज रफ्तार से बढ़ने का अहद किया। देश में पंचवर्षीय योजना लागू की गईं, जिसके जरिये देश चहुमुखी विकास की तरफ अग्रसर हो सका। जिसमें सामाजिक क्रान्ति और ईमानदारी के रास्ते पर शपथ ली गई थी। लेकिन बेहद दुखद हालात हैं कि आजादी की आधी से ज्यादा सदी बीत चुकी है और हमारा देश दिव्यांग सा हो गया है। इस देश ने कभी आदर्श रहा सत्यमेव जयते से किनारा कर लिया गया है। अच्छाई की जगह पर बुराई काबिज हो गई है। नैतिकता पर अनैतिकता हावी हो गई है और ईमानदारी कागजों के अन्दर दफन होकर रह गई है। जबकि भ्रष्टाचार चरम पर है, इसे देखकर ऐसा लगने लगा है कि देश उस अन्धे कुऐं की जरफ बढ़ रहा है। जिसके अन्दर गिर जाने के बाद मौत के सिवा कुछ नजर नहीं आता। आजादी के बाद भले ही देश ने तरक्की के नये आयाम स्थापित किये हों या आज इन्टरनेट से दुनिया बेहद करीब सी लगती हो और पोस्टकार्ड की जगह भले ही ई-मेल ने ले ली हो। लेकिन इसके बदले में आपसी भाई-चारा, सदभाव, प्रेम, और सच्चाई मानो हमसे मीलों दूर जाकर खड़ी हो गई है। समाज दूषित हो गया है। बुराई ने मजबूती के साथ अपने नाखून गड़ा लिए हैं और जन सरोकारों से जुड़ी लोक कल्याण की बातें हवा हवाई हो गई हैं। मुल्क में भ्रष्टाचार, असहिष्णुता, अराजकता, महगाई और बेरोजगारी से देश का हर नागरिक त्रस्त है। इसके लिए देश का हर नागरिक राजनीतिक व्यवस्था को दोषी ठहरा रहा है। ये सही भी है क्योंकि इसी राजनीतिक व्यवस्था ने जनतांत्रिक मूल्यों को प्रदूषित किया है। आलम ये है कि सरकारी सिस्टम वैन्टीलेटर पर है, शासन व्यवस्था में करप्शन के खिलाफ आवाज उठाने वाले को प्रताड़ित किया जाता है। आज रक्षक ही भक्षक बन बैठे हैं। ऐसे सूरतेहाल में देशवासियों को जागरूक करने का समय करीब आकर दस्तक दे रहा है कि भ्रष्टाचार और समाज के अन्दर प्रदूषण फैलाने वालों को दण्ड देने के लिए आमजन को आगे आना चाहिए। देश को बचाने के लिए जागरूक होना नितान्त आवश्यक है। क्योंकि अगर भावी पीढ़ी के भविष्य को सवारना है तो पहले खुद को सुधारना जरूरी है। देश को गर्त में ढ़केल रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलन्द करनी होगी। अगर हम एक आदर्श समाज का सपना देख रहे हैं तो हमें इसकी शुरूवात अपने घर से करनी पड़ेगी। समाज की एकजुटता और अच्छे कार्यों के लिए एकता का संदेश हमें जन-जन तक पहुचाने के लिए घर-घर जाना होगा। तभी हम आदर्श राज्य और समाज की स्थापना में हिस्सेदारी ले सकते हैं। ऐसे में गणतंत्र की सार्थकता तभी होगी जब देया के हर नागरिक को न्याय के साथ भरपेट भोजन और काम मिले।
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