देहरादून : जैसा कि आपको मालूम है कि देवभूमि में मलिन बस्तियों का मुद्दा चुनाव आने पर सुर्खियों में बना रहता था लेकिन बात मालिकाना हक देने की कही जाती थी लेकिन उस हक का रास्ता फाईलों में कैद होकर रह जाता था। लेकिन अब मलिन बस्तियों में निवास कर रहे लोगों के सपने साकार हाने का वक्त आ गया है। आपको बता दें कि उत्तराखण्ड के 63 नगर निकायों में 582 मलिन बस्तियों में तकरीबन 7,71,585 लोग निवास करते हैं।
इनमें से 36 फीसदी बस्तियां निकायों पर जबकि दस फीसद राज्य और केंद्र सरकार, रेलवे व वन विभाग की भूमि पर अतिक्रमण करके बनी हैं। वहीं, बाकी 44 फीसद बस्तियां निजी भूमि पर अतिक्रमण करके बनाई गईं है। अगर इसे अमलीजामा पहनाने में देर न की गई तो नये शासनसदेश में वह जिस जमीन पर रह रहे हैं उन्हें उसका मालिकाना हक देने की प्रक्रिया शुरू होने जा रही है। इसके तहत सचिव आवास एवं शहरी विकास शैलेश बगोली ने सभी जिलाधिकारियों और नगर निकायों के अधिकारियों को निर्देश दिए हैं।
सचिव बगोली ने कहा है कि नगर निकायों के अंतर्गत आने वाली मलिन बस्तियों के लोगों को भूमि अधिकार, उनके सीमांकन एवं पंजीकरण के लिए 2016 की नियमावली के प्रावधानों के तहत गठित समिति के माध्यम से तीन श्रेणियों में बांटा गया है। इसमें श्रेणी.एक में ऐसी बस्तियां वर्गीकृत की जा सकती हैं जिनमें आवास-निवास योग्य हो और भू स्वामित्व अधिकार निर्धारित मानकों के अनुसार प्रदान किया जा सके।
श्रेणी.दो में भूगर्भीय, भौगोलिक, पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र में अवस्थित निवासों के ऐसे भू.भाग को वर्गीकृत किया जाना है जिसमें कुछ सुरक्षा उपाय अपनाकर निवास योग्य बनाया जा सके। श्रेणी.तीन में ऐसी भूमि पर अवस्थित आवासों को वर्गीकृत किया जा सकता है जहां भू.स्वामित्व अधिकार प्रदान किया जाना विधिक, सुरक्षा एवं स्वास्थ्य, मानव निवास के दृष्टिकोण उपयुक्त न हो। ऐसे स्थानों से बस्तियोें को किसी दूसरे स्थान पर स्थानांतरित किया जाना उचित होगा।
सचिव ने तीनों श्रेणियों के तहत मलिन बस्तियों का वर्गीकरण करते हुए एक माह के भीतर सभी डीएम व निकाय अधिकारियों से रिपोर्ट शासन को भेजने के निर्देश दिए हैं।