भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग (जीएसआई) के वैज्ञानिक दीपक श्रीवास्तव और उनकी टीम ने 1991 से 1994 तक केदारनाथ मंदिर और आसपास के क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया था। इस दौरान वैज्ञानिकों ने हर मौसम में वहां रहते हुए रिपोर्ट तैयार थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साधना स्थली रही गरुड़चट्टी उपेक्षा का शिकार है। लगभग तीन दशक पूर्व भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग के विशेषज्ञ इसे टाउनशिप के रूप में विकसित करने की बात अपनी रिपोर्ट में कह चुके हैं। लेकिन इस दिशा में कार्ययोजना तक नहीं बन पाई है। जून 2013 की आपदा के बाद से यह प्राचीन मंदिरों व धर्मशालाओं का क्षेत्र वीरान पड़ा है। इन आठ वर्षों में यहां गिनती के श्रद्धालु ही पहुंचे हैं।
केदारनाथ मंदिर के आसपास अधिक निर्माण कार्य सही नहीं
भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग (जीएसआई) के वैज्ञानिक दीपक श्रीवास्तव और उनकी टीम ने 1991 से 1994 तक केदारनाथ मंदिर और आसपास के क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया था। इस दौरान वैज्ञानिकों ने हर मौसम में वहां रहते हुए रिपोर्ट तैयार थी। यह रिपोर्ट ‘ऑन इंटीग्रेटेड आइस, स्नो एवलांच एंड क्वार्टनरी जियोलॉजिकल स्टडीज इन मंदाकिनी वेली अराउंड केदारनाथ, डिस्ट्रिक्ट चमोली, उत्तर प्रदेश’ नाम से जारी की गई थी।
इसमें कहा गया था कि केदारनाथ मंदिर के आसपास अधिक निर्माण कार्य सही नहीं है। रिर्पोट में मंदाकिनी नदी के बायीं तरफ केदारनाथ मंदिर से एक किमी पहले स्थित गरुड़चट्टी क्षेत्र को एवलांच फ्री बताया गया था। वैज्ञानिकों का कहना था कि यात्राकाल में केदारनाथ में दबाव करने के लिए गरुड़चट्टी को टाउनशिप के रूप में विकसित किया जा सकता है। उन्होंने क्षेत्र को भूस्खलन से भी सुरक्षित बताया था।
भूस्खलन की चपेट में गरुड़चट्टी
जून 2013 की आपदा के बाद भी अक्तूबर माह में जीएसआई के विशेषज्ञों ने गरुड़चट्टी का भू-गर्भीय सर्वेक्षण किया था। तब भी यह क्षेत्र आपदा की दृष्टि से सुरक्षित पाया गया था। लेकिन आठ वर्ष बीत जाने के बाद भी गरुड़चट्टी उपेक्षा का शिकार है। रामबाड़ा-गरुड़चट्टी-केदारनाथ पैदल मार्ग आज भी रामबाड़ा से आगे ध्वस्त है।
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