सलीम रज़ा
देहरादून: उत्तराखण्ड धामी 2 और रिपीट भाजपा से भगवामय हो गया है। देवभूमि की जनता ने अब राहत की सांस ली है, कि अब प्रदेश में चुहुंमुखी विकास होने के साथ चुनावी दौर में की गई योजनाओं को धरातल पर उतारने और उन्हें अमलीजामा पहनाने का काम तेजी के साथ हांगे। हमारे युवा और उर्जावान मुख्यमंत्री से देवभूमि की जनता ऐसी ही अपेक्षा रखती है, लेकिन सवाल ये उठता है कि धामी जी फ्री हैंण्ड होने के बावजूद विकास और योजनाओं के साथ ज्वलंत मुद्दों का समाधान कर सकते हैं ।
ऐसे में धामी को नौकरशाही का पूरा साथ और सहयोग जरूरी होगा जबकि उत्तराखण्ड की नौकरशाही सरकार के साथ सहयोग न देने के लिए चर्चाओं मे है। ये कोई नई बात नहीं है, उत्तराखण्ड गठन के साथ ही नौकरशाही ने अपनी मनमर्जी के पांव पसारने शुरू कर दिये थे फिर चाहें कांग्रेस हो या फिर भाजपा नौकरशाही अपनी मनमानी करने से नहीं चूकी। धीरे-धीरे हालात ऐसे हो गये कि नौकरशाही प्रदेश में हावी हो गई इसका जीता जागता उदाहरण था जब त्रिवेन्द्र रावत सरकार थी।
उस वक्त कई नेताओं ने हावी होती नौकरशाही पर टिप्पणी भी की थी। हालांकि इससे क्षुब्ध होकर त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा भी था कि जनप्रतिनिधि अधिकारियों से ऊपर हैं लेकिन फिर भी नाक्रशाहों के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। नेतृत्व परिवर्तन के साथ जब पुष्कर सिंह धामी मुख्यमंत्री बने तो उनहोंने अपने छोटे से कार्यकाल में नौकरशाही पर लगाम न कसके सिर्फ उनके दायित्वों में फेर बदल किया, लेकिन फिर भी चुनाव के दौरान ऐसी बातों का चर्चा गर्म रहा कि अधिकारियों ने सत्तरूढ़ सरकार के खिलाफ विपक्ष के लिए काम किया।
बहरहाल सवाल ये उठता है और अन्दाजा भी लगाया जा सकता है कि इस बार धामी ऐसी कोई भी गल्ती नहीं करेंगे जो उनके काम करने के रास्ते में बाधक हो। उममीद है कि धामी सबसे पहले बेलगाम हो रही नौकरशाही पर लगाम कसेंगे जिससे उनका कार्यकाल र्निविवाद रह सके । लेकिन इतना तय है कि प्रदेश की नौकरशाही धामी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी।