नई दिल्ली: केंद्र सरकार के नवंबर 2016 में लिए गए नोटबंदी के फैसले के खिलाफ कई याचिकाएं अदालत में दायर की गई थी। सरकार ने 2016 से एक हजार और 500 रुपये के नोटों पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया था। इसे चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट आज यानि सोमवार को अपना फैसला सुनाया। कोर्ट ने केंद्र सरकार के 2016 में 500 रुपए और 1000 रुपए के नोटों को बंद करने के फैसले को बरकरार रखा है।
शीर्ष अदालत ने कहा ‘आरबीआई के पास नोटबंदी लाने का कोई अधिकार नहीं है और केंद्र तथा आरबीआई के बीच परामर्श के बाद यह निर्णय लिया गया। नोटबंदी से पहले केंद्र और आरबीआई के बीच सलाह-मशविरा हुआ था। इस तरह के उपाय को लाने के लिए एक उचित सांठगांठ थी और हम मानते हैं कि नोटबंदी आनुपातिकता के सिद्धांत से प्रभावित नहीं हुई थी।’
विशेष रूप से, नोटबंदी को चुनौती देते हुए 58 याचिकाएं दायर की गईं, जिसमें तर्क दिया गया कि यह सरकार का सुविचारित निर्णय नहीं था और अदालत द्वारा इसे रद्द कर दिया जाना चाहिए।
प्रमुख बिंदु
- केंद्र ने तर्क दिया है कि जब कोई ठोस राहत नहीं दी जा सकती है तो अदालत किसी मामले का फैसला नहीं कर सकती है। यह ‘घड़ी को पीछे करना’ या ‘एक तले हुए अंडे को पहले की तरह करने’ जैसा होगा।नोटबंदी को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अड़तालीस याचिकाएं दायर की गईं, जिसमें तर्क दिया गया कि यह सरकार का सुविचारित फैसला नहीं है और अदालत को इसे खारिज कर देना चाहिए।
- केंद्र ने कहा कि नोटबंदी एक सुविचारित निर्णय था और नकली धन, आतंकवाद के वित्तपोषण, काले धन और कर चोरी के खतरे से निपटने के लिए एक बड़ी रणनीति का हिस्सा था।
- न्यायमूर्ति एसए नज़ीर की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अपने शीतकालीन अवकाश से पहले दलीलें सुनीं और 7 दिसंबर को फैसले को स्थगित कर दिया। सूत्रों ने कहा कि बेंच के अन्य सदस्य जस्टिस बीआर गवई, बीवी नागरत्ना, एएस बोपन्ना और वी रामासुब्रमण्यन हैं। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने दो अलग-अलग निर्णय लिखे हैं।
- विशेष रूप से, इससे पहले, शीर्ष अदालत ने केंद्र और भारतीय रिजर्व बैंक को 2016 के विमुद्रीकरण के फैसले से संबंधित रिकॉर्ड को एक सीलबंद लिफाफे में पेश करने के लिए कहा था।
- उन्होंने कहा था कि उनके पास उस तरीके की जांच करने की शक्ति है जिसमें नोटबंदी का निर्णय लिया गया था और न्यायपालिका अपने हाथों को मोड़कर सिर्फ इसलिए नहीं बैठ सकती है क्योंकि यह एक आर्थिक नीतिगत निर्णय है। शीर्ष अदालत की टिप्पणी तब आई जब भारतीय रिजर्व बैंक के वकील ने यह प्रस्तुत किया कि आर्थिक नीति के फैसलों पर न्यायिक समीक्षा लागू नहीं हो सकती है।
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