देहरादून: कितनी हैरत की बात है कि विभिन्न सरकारी योजनाओं के लिए मंजूर करी गई 872 करोड़ की राशि कहां खर्च हुई इसका सरकार को ही .पता नहीं है।दरअसल विभागों की तरफ से इस रकम के खर्च का उपयोगिता प्रमाण पत्र ही प्रस्तुत नहीं किया गया है । गौरतलब है कि नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) ने इस पर अपनी कड़ी आपत्ति जताई है।
आपको बता दें कि विधानसभा सत्र के दूसरे दिन विधानसभा के पटल पर नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक की वित्त लेखों और विनियोग लेखों पर रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। इस रिपोर्ट में राज्य के बजट प्रबंधन पर कई सवाल खड़े किए गए हैं इसके साथ ही राज्य के सरकारी विभागों द्वारा विकास योजनाओं के नाम पर खर्च की गई धनराशि के उपयोग के तरीकों पर भी सवाल उठाए हैं।
गौरतलब है कि नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि वर्ष 2020-21के दौरान 764 करोड़ रुपये की योजनाओं से संबंधित उपयोगिता प्रमाणपत्र प्रस्तुत नहीं किए गये हैं। नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट के मुताबिक यह पहला मौका नहीं है जब सरकारी विभागों ने योजनाओं के बजट खर्च का उपयोगिता प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं किया। इससे पहले पिछले सालों में भी विभागों का काम करने का यही तरीका रहा है।
रिपोट्र मे ये भी कहा गया है कि राज्य की सरकारों ने पिछले 17 सालों में विधानमंडल की मंजूरी के बिना 42 हजार 873 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। विभिन्न अनुदानों और विनियोग के तहत खर्च की गई इस राशि को विधानसभा से मंजूर कराया जाना जरूरी था लेकिन ऐसा नहीं किया गया। कैग ने इसे संविधान के अनुच्छेद 204 और 205 का उल्लंघन माना है।