आज राष्ट्रीय हथकरघा दिवस है उत्तराखंड में वर्षों से हाथ से बुनाई की परंपरा देवभूमि की विरासत रही है, टेक्नोलॉजी के जमाने में आज भी कई राज्य के बुनकर परिवारों ने अपनी हाथ की कला को देखाकर इस उद्योग को जीवित रखा है। मध्य हिमालय की गोद में बसे उत्तराखंड का हस्तशिल्प सदियों से आकर्षण का केंद्र रहा है। फिर चाहे वह काष्ठ शिल्प हो ताम्र शिल्प अथवा ऊन से बने वस्त्र। सभी की खूब मांग रही है। हालांकि बदलते वक्त की मार से यहां का हस्तशिल्प भी अछूता नहीं रहा है।
मुख्यमंत्री धामी के प्रयास से आज उत्तराखण्ड हथकरघा उत्पादों के क्षेत्र में तेजी से उभरता हुआ नजर आ रहा है। समय समय पर मुख्यमंत्री धामी द्वारा कलाकरों को प्रोत्साहित भी किया जाता है। उत्तराखंड राज्य आत्मनिर्भर के साथ लोकल फॉर वोकल में भी सहयोग कर रहा है। आज देश विदेश में कंडाली(बिच्छू घास) और भांग के रेशे से तैयार उत्पाद देश विदेश में छाए हुए हैं। प्राकृतिक रेशे से बने वास्कट, स्टॉल, मफलर की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में मांग बढ़ रही है। राज्य में हैंडलूम उत्पादों का सालाना 50 करोड़ का कारोबार होता है। विशेषकर उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी, पिथौरागढ़ जिले में हस्तशिल्प व हथकरघा उद्योगों से कई लोग जुड़े हैं।