देहरादून: विधानसभा से बर्खास्त कार्मिकों को कांग्रेस का पूर्ण रूप से समर्थन मिल रहा है, पहले पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत व पूर्व नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह के बाद आज कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने भी धरना स्थल पहुंचकर बर्खास्त कार्मिकों को कांग्रेस की ओर से पूर्ण समर्थन दिया। इस दौरान द्वाराहाट से कांग्रेस के विधायक मदन बिष्ट सहित कई कांग्रेसी नेताओं ने बर्खास्त कार्मिकों के साथ धरना स्थल पर बैठकर समर्थन दिया।
बर्खास्त कार्मिकों का 20वें दिन भी उपवास
विधानसभा के बाहर बर्खास्त कार्मिकों का 20वें दिन भी उपवास एवं धरना प्रदर्शन जारी रहा, धरना स्थल पर पहुंचे कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने कहा कि विधानसभा भर्ती प्रकरण में बर्खास्त कर्मचारी कहीं से भी दोषी नहीं है बल्कि दोषी वह लोग हैं जिन्होंने इस प्रकार की नियुक्ति प्रक्रिया बनाई। उन्होंने सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि मुख्यमंत्री ने विचलन के माध्यम से विधानसभा में पदों को भरे जाने की स्वीकृति दी थी वहीं राजनीति के चलते अब सरकार कार्मिकों को बर्खास्त करने पर बधाई दे रही है। उन्होंने कहा कि यदि नियुक्ति देने वाला दोषी नहीं तो बर्खास्त कार्मिक भी दोषी नहीं हो सकते हैं।
प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि इसका जल्द से जल्द समाधान निकाला जाना चाहिए, ऐसा रास्ता निकाला जाए की जिससे पहाड़ की गरीब युवाओं की नौकरी भी ना जाए। उन्होंने कहा कि नेताओं के परिजन अब भी विधानसभा में कार्य कर रहे हैं जिन्हें बचाने के लिए विधानसभा अध्यक्ष व सरकार प्रयास कर रही है, जो कि बिल्कुल निंदनीय है। उन्होंने कहा कि सभी कार्मिकों के साथ एक जैसा व्यवहार हो या फिर बर्खास्त कार्मिकों को भी बहाल किया जाए एवं आगे के लिए नियम प्रक्रिया में सुधार लाया जाए। प्रदेश अध्यक्ष ने बर्खास्त कार्मिकों को आश्वस्त करते हुए कहा कि इस संबंध में मुख्यमंत्री से मुलाकात करेंगे, कोर्ट में भी सहयोग करेंगे एवं कार्मिकों की इस लड़ाई में कांग्रेस पूर्ण रूप से साथ देगी।
सरकार रोजगार देने का नहीं बल्कि छिनने का कार्य कर रही
इस अवसर पर विधायक मदन बिष्ट ने कहा कि सरकार रोजगार देने का नहीं बल्कि छिनने का कार्य कर रही है, राज्य गठन के बाद से विधानसभा में एक ही प्रक्रिया व एक ही रास्ते से नियुक्तियां हुई है तो कार्मिकों को बैकडोर कहकर बर्खास्त नहीं किया जा सकता। उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष पर सीधा आरोप लगाया कि ऋतु खंडूडी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी को देखते हुए अपनी राजनीति चमकाने के उद्देश्य से ढाई सौ कार्मिकों की बलि चढ़ा दी, उन्होंने सभी कार्मिकों को एकजुट होकर इस लड़ाई को लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने कोटिया कमेटी को गलत ठहराते हुए खड़े कर दिए कई सवाल
करन माहरा ने कहा कि विधानसभा कानून एवं परंपरा से चलती है, विधानसभा की पीठ सम्मानित पीठ है उसके द्वारा किए गए किसी भी कार्य के जांच केवल हाईकोर्ट/सुप्रीम कोर्ट के जजों की पीठ या फिर सभी दलों के विधायकों की कमेटी बनाकर ही की जा सकती है। विधानसभा अध्यक्ष ने एक बहुत ही गलत परंपरा की नींव रख दी है, जो संसदीय लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है, होना तो यह चाहिए था कि विधानसभा के सदस्यों की जांच कमेटी बनती और वह जांच कमेटी अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञों को बुलाती कानून के जानकारों को बुलाती, कार्मिक मामलों के जानकारों को बुलाती। उन्होंने कहा कि कोटिया समिति में कानून के जानकारों को पहले ही शामिल क्यों नहीं किया गया, यह बात भी गले नहीं उतर रही है। अगर कानून के जानकार होते तो नियमित हो चुके कर्मचारियों को लेकर विधिक राय उसी समय दे देते। यह कैसे कमेटी है जिसने कर्मचारियों को सुनवाई तक का अवसर नहीं दिया और एक पक्षीय फैसला सुना दिया। यह कैसे कमेटी है जो यह तथ्य भी उजागर नहीं कर पाई कि यदि 2001 से 2015 वालों की नियुक्ति ही अवैध है तो उनका नियमितीकरण कैसे वैध हो गया।
ये कहीं न कहीं विधानसभा अध्यक्ष की मंशा पर सवाल खड़े करते हैं। नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन विधानसभा द्वारा भी किया गया है, जिसने कर्मचारियों को न नोटिस दिया, न सुनवाई का अवसर एक झटके में ढाई सौ कर्मचारियों को सड़क पर खड़ा कर दिया। विधानसभा का यह कैसा न्याय है जो वर्ष 2017 में उच्च न्यायालय में नियुक्तियों को वैध बताती है और 2022 में उन्हें अवैध करार दे देती है। कमेटी जिसने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का संज्ञान तक नहीं लिया। क्या ये कमेटी न्यायालय से ऊपर है।
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