यमुनोत्री: उत्तराखंड में पर्यटन और धर्मिक स्थलों की सुरक्षा व सुचारू संचालन को लेकर लगातार उठ रही चिंता को लेकर यमुनोत्री से निर्दलीय विधायक संजय डोभाल ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। डोभाल का कहना है कि प्रदेश की चारधाम यात्रा पूरी तरह से चरमरा गई है और सरकार ने इसे लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाए। विधायक डोभाल ने बताया कि चारधाम यात्रा न केवल तीर्थयात्रियों के लिए असुविधाजनक बन चुकी है, बल्कि स्थानीय लोगों और छोटे व्यापारियों के लिए भी यह चिंता का विषय बन गई है। उन्होंने कहा, “चारधाम हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान हैं। इनकी देखभाल और सुचारू संचालन हमारी जिम्मेदारी है, लेकिन दुर्भाग्यवश सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया।”
संजय डोभाल ने आगे कहा कि केवल पर्यटन क्षेत्र ही नहीं, बल्कि प्रदेश में भ्रष्टाचार, खनन और नौकरशाही की लापरवाही भी आम जनता के जीवन को प्रभावित कर रही है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या सरकार इन महत्वपूर्ण मुद्दों पर नजर रखती है या केवल आकस्मिक रूप से मामलों को टाल रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि चारधाम यात्रा जैसी महत्वपूर्ण धार्मिक गतिविधियों को समय पर व्यवस्थित नहीं किया गया, तो इसका असर न केवल तीर्थयात्रियों पर पड़ेगा बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था और प्रदेश की छवि पर भी असर डालेगा। स्थानीय निवासियों का कहना है कि मार्गों की स्थिति और यातायात की सुविधा नाजुक है। कई लोग अपने अनुभव साझा करते हुए बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में चारधाम यात्रा में सुरक्षा और मूलभूत सुविधाओं में गिरावट आई है।
डोभाल ने स्पष्ट किया कि वह सिर्फ आलोचना करने के लिए नहीं बोल रहे, बल्कि सरकार को चेतावनी भी दे रहे हैं कि अगर शीघ्र सुधार नहीं हुआ, तो प्रदेश की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर खतरे में पड़ सकती है। उन्होंने जनता से अपील की कि वे अपने अनुभव साझा करें और सरकार से उचित कदम उठाने की मांग करें। संजय डोभाल की इस टिप्पणी के बाद राजनीतिक हलकों में भी हलचल बढ़ गई है। विश्लेषकों का कहना है कि चारधाम यात्रा के मुद्दे पर यदि सरकार समय रहते ध्यान नहीं देती, तो यह आगामी चुनावों में भी मतदाताओं के फैसले को प्रभावित कर सकता है। उत्तराखंड की पहाड़ियों में चारधाम यात्रा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह स्थानीय रोजगार, पर्यटन और सांस्कृतिक संरक्षण का भी मुख्य आधार है। ऐसे में विधायकों और स्थानीय जनता की आवाज़ को अनसुना करना सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है।