उत्तराखंड में मानसून ने मचाई तबाही, 79 लोगों की मौत और 5 हजार करोड़ का नुकसान

उत्तराखंड इस साल मानसून की मार से बुरी तरह जूझ रहा है। कभी बादल फटना, तो कभी भूस्खलन और अचानक बढ़ते नदी-नालों का जलस्तर—इन सबने पहाड़ से लेकर मैदान तक हर किसी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। इस आपदा ने न केवल सैकड़ों परिवारों को बेघर कर दिया बल्कि कई परिवार अपनों को खोने के दर्द से भी जूझ रहे हैं।

मौत और तबाही का बढ़ता आंकड़ा

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 1 अप्रैल से 3 सितंबर 2025 के बीच अब तक 79 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 115 लोग घायल हुए हैं। सबसे चिंताजनक तथ्य यह है कि 90 से अधिक लोग अब भी लापता हैं। प्रदेशभर में 1828 मकान आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त, 229 मकान पूरी तरह ढह गए और 71 मकान आधे से ज्यादा क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। लोगों का कहना है कि पहाड़ पर लगातार हो रही बारिश ने जिंदगी को ठहर सा दिया है। कई गांव आज भी सड़क से जुड़े नहीं हैं, जिसके कारण राहत और बचाव कार्य में बड़ी दिक्कतें आ रही हैं।

टूटा 10 साल का रिकॉर्ड

मौसम विभाग के आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ अगस्त महीने में ही 574 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई, जिसने पिछले 10 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया
लगातार बरसते बादलों ने न सिर्फ पहाड़ों को खोखला किया बल्कि नदियों का रौद्र रूप भी लोगों के सामने ला दिया।

मुख्यमंत्री खुद कर रहे ग्राउंड जीरो से मॉनिटरिंग

इस संकट के बीच मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी लगातार हालात पर नजर बनाए हुए हैं। वह अधिकारियों के साथ मीटिंग्स के अलावा कई प्रभावित इलाकों का ग्राउंड जीरो पर जाकर निरीक्षण कर रहे हैं। सीएम धामी ने साफ कहा है कि राज्य सरकार लोगों की हर संभव मदद के लिए पूरी तरह तैयार है। वहीं, आपदा प्रबंधन विभाग लगातार लोगों से सतर्क रहने की अपील कर रहा है।

5 हजार करोड़ का नुकसान

आपदा सचिव के अनुसार, अब तक प्रदेश में 5000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान दर्ज किया जा चुका है। सड़कें टूट गईं, पुल बह गए और कई जगह संचार व्यवस्था ठप हो गई। केंद्र सरकार से भी जल्द ही एक विशेष टीम उत्तराखंड आने वाली है, जो नुकसान का विस्तृत आकलन कर अपनी रिपोर्ट तैयार करेगी।

लोगों की पीड़ा

बारिश और भूस्खलन की इस तबाही ने लोगों की जिंदगी को पूरी तरह अस्त-व्यस्त कर दिया है।

  • जिन परिवारों ने अपनों को खो दिया है, उनकी आंखों से आंसू रुक नहीं रहे।
  • जिनके मकान ढह गए, वे खुले आसमान के नीचे जिंदगी काटने को मजबूर हैं।
  • राहत कैंपों में ठहरे लोग अब भी हर रात इस डर में सोते हैं कि अगली सुबह क्या हालात होंगे।

प्रशासन की चुनौती

लगातार हो रही बारिश शासन-प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती बन गई है। सड़कें टूटने से कई जगह राहत सामग्री पहुंचाना मुश्किल हो रहा है।
कई ग्रामीण इलाकों में लोग अब भी मदद का इंतजार कर रहे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *