उत्तराखंड में मानसून का नया कहर: थराली में तबाही, वैज्ञानिकों ने चेताया – “बादल फटने का हॉटस्पॉट बन रहा है प्रदेश”

उत्तराखंड में इस बार का मानसून लगातार तबाही लेकर आ रहा है। धराली आपदा के ज़ख़्म अभी भरे भी नहीं थे कि शुक्रवार रात चमोली के थराली में तेज बारिश ने नया कहर ढा दिया। थराली बाज़ार में करीब 40 दुकानें और 20 मकान भारी बारिश की चपेट में आकर क्षतिग्रस्त हो गए। इस हादसे में एक युवती की मौत हो गई, जबकि एक बुज़ुर्ग अब तक लापता हैं।

धराली से थराली तक तबाही का सिलसिला

पहाड़ों में इस समय हालात बेहद कठिन हैं। धराली में आई आपदा से लोग अभी उबर भी नहीं पाए थे कि थराली में मलबे का सैलाब नई मुसीबत बनकर आया। बारिश के बाद बहकर आया भारी मलबा गदेरों और नालों में जमा हो गया और अचानक नीचे की ओर बह निकला। इसने रास्ते में आई दुकानों और मकानों को नुकसान पहुंचाया।

लोगों का कहना है कि रातभर बादल गरजते और बिजली कड़कती रही, जिससे दहशत का माहौल था। सुबह जब तबाही का मंजर सामने आया तो कई लोग अपने टूटे आशियाने और बर्बाद दुकानों को देखकर रो पड़े।

बादल फटने से जुड़ी वैज्ञानिक चेतावनी

इसी बीच वाडिया, जलागम, आईआईजी, दून विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का नया शोध सामने आया है। इसमें साफ कहा गया है कि उत्तराखंड अब बादल फटने जैसी चरम घटनाओं का हॉटस्पॉट बन चुका है।

1982 से 2020 तक के आंकड़ों पर आधारित इस अध्ययन में पाया गया है कि पिछले चार दशकों में बारिश, सतही तापमान और जल प्रवाह में बड़े बदलाव हुए हैं।

  • 2010 के बाद से बादल फटने जैसी घटनाओं में तेजी आई।

  • पूर्वी जिलों (नैनीताल, ऊधमसिंह नगर) में 1990 के दशक में बारिश बढ़ी, जबकि 2000 के दशक में पश्चिमी जिलों (जैसे बागेश्वर) में कमी देखी गई।

  • 2020 तक यह पैटर्न फिर उलट गया और पूर्वी इलाक़ों में ज्यादा बारिश दर्ज होने लगी।

  • तराई और रुड़की क्षेत्र में भी जल प्रवाह के पैटर्न में भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिला।

थराली में बारिश के आंकड़े चौंकाने वाले

थराली में शुक्रवार को हुई बारिश का आंकड़ा बता रहा है कि हालात सामान्य नहीं हैं।

  • शाम 6.45 से 7.45 बजे तक एक घंटे में 38 मिमी बारिश हुई।

  • रात 11 से 12:15 बजे तक 36 मिमी और बारिश दर्ज की गई।

  • शुक्रवार सुबह 8:30 से शनिवार सुबह 3:45 बजे तक कुल 147 मिमी बारिश हुई।

  • जबकि सामान्य तौर पर चमोली जिले में 24 घंटे में 6.9 मिमी बारिश होती है, इस बार यह आंकड़ा 17.7 मिमी तक पहुंच गया, यानी 157% अधिक।

वैज्ञानिकों का कहना

मौसम विभाग के पूर्व निदेशक बिक्रम सिंह और वैज्ञानिक रोहित थपलियाल का मानना है कि अरब सागर से आने वाली हवाएं जब हिमालय की पहाड़ियों से टकराती हैं, तो अचानक ऊपर उठ जाती हैं और तेजी से बादल बनने लगते हैं। यही वजह है कि बादल फटने की घटनाएं अक्सर तड़के सुबह होती हैं।

बिक्रम सिंह ने बताया कि रात में तापमान घटने से वातावरण ओसांक (Dew Point) तक पहुंच जाता है और नमी पानी की बूंदों में बदल जाती है। इससे अचानक भारी बारिश होती है और मलबा नीचे की ओर बहकर तबाही मचाता है।

इस साल सामान्य से ज्यादा बारिश

23 अगस्त तक ही उत्तराखंड में 1031 मिमी बारिश दर्ज की जा चुकी है। सामान्य तौर पर इस समय तक औसतन 904.2 मिमी बारिश होती है। यानी इस साल राज्य में पहले ही 14% अधिक बरसात हो चुकी है और मौसम वैज्ञानिकों का अनुमान है कि मानसून के अंत तक यह आंकड़ा और बढ़ सकता है।

असली खतरा – मलबा और गदेरों में आया सैलाब

विशेषज्ञों का मानना है कि असली खतरा सिर्फ बादल फटने से नहीं है, बल्कि बारिश के बाद नदी-नालों में जमा मलबा है। यही मलबा अचानक सैलाब बनकर नीचे की ओर बहता है और तबाही मचाता है। धराली से लेकर थराली तक यही पैटर्न देखने को मिला है।

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