उत्तराखंड इंजीनियर्स फेडरेशन ने पौड़ी जिला प्रशासन द्वारा अधिशासी अभियंता राष्ट्रीय राजमार्ग खंड, श्रीनगर के खिलाफ दर्ज एफआईआर का विरोध किया है। फेडरेशन ने कहा कि यदि मामला तुरंत वापस नहीं लिया गया, तो सोमवार से प्रदेश भर में इंजीनियरों का आंदोलन शुरू किया जाएगा। फेडरेशन की रविवार को हुई बैठक में महासचिव जितेंद्र सिंह देव ने बताया कि 11 सितंबर को हुई तेज बारिश के कारण श्रीनगर से बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग का लगभग 45 मीटर हिस्सा बह गया था। इस आपदा के समय ईई एनएच ने त्वरित कार्रवाई करते हुए खतरे की परिस्थितियों में सड़क को खोला, ताकि यातायात बाधित न हो और आमजन को कठिनाई न हो।
जितेंद्र सिंह देव ने कहा, “अलकनंदा नदी के पास बांध से कटाव होने और 35-40 मीटर जमीन धंसने के बावजूद तत्काल सुधार कार्य करना जरूरी था। जिला प्रशासन द्वारा लगातार दबाव बनाए जाने के बावजूद ईई ने त्वरित और सुरक्षित कार्रवाई की। अगर तकनीकी सुधार नहीं किया जाता, तो जनहानि का खतरा बढ़ जाता और बजट भी बेवजह खर्च हो जाता।” फेडरेशन के अन्य पदाधिकारियों ने भी कहा कि लोनिवि प्रांतीय अभियंत्रण सेवा संघ द्वारा यह मामला केंद्रीय विभाग को डीपीआर के माध्यम से भेजा जा चुका है, बावजूद इसके अधिशासी अभियंता के खिलाफ FIR दर्ज कर दिया गया। संघ अध्यक्ष प्रवीण कुमार ने कहा कि प्रदेश भर के इंजीनियर इस फैसले से आक्रोशित हैं।
फेडरेशन ने आंदोलन की रूपरेखा भी तैयार कर ली है। सोमवार को सभी जिलों में डीएम और मंगलवार को विधायक, सांसदों को ज्ञापन सौंपा जाएगा। विरोध में काली पट्टी बांधकर कार्य बहिष्कार और हड़ताल करने की संभावना भी जताई गई है। 17 सितंबर को प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में इस आंदोलन के अगले चरणों का ऐलान किया जाएगा। महासचिव बलराम मिश्रा और अन्य पदाधिकारी जैसे वाईएस तोमर, मुकेश कुमार, अमित रंजन, हरीश चंद्र सिंह, राजेश गुप्ता आदि इस बैठक में मौजूद रहे। फेडरेशन का स्पष्ट संदेश है कि ऐसे फैसले आपदा प्रबंधन और तकनीकी कार्यों को प्रभावित कर सकते हैं, इसलिए मामले की जांच केवल आदेश देने वाले अफसरों पर होनी चाहिए, न कि कार्य में लगे अभियंताओं पर।
इस विवाद ने न केवल इंजीनियरों में रोष पैदा किया है, बल्कि आम जनता में भी सवाल खड़े कर दिए हैं कि आपदा प्रबंधन और त्वरित तकनीकी कार्रवाई में कितना भरोसा रखा जा सकता है। उत्तराखंड इंजीनियर्स फेडरेशन का कहना है कि उनकी कोशिश है कि प्रशासन और विभागीय निर्णय तकनीकी दृष्टिकोण और जनहित को ध्यान में रखते हुए हों।